ग़म अता कर कि शादमानी दे जो भी दे मुझ को जावेदानी दे मुस्कुराते हैं चोट खा कर भी कुछ तो इनआ'म-ए-ज़िंदगानी दे रह गया कौन क़द्र-दाँ बाक़ी किस को आवाज़-ए-ख़ुश-बयानी दे हम से उन का गुरेज़ है जाएज़ क्या मज़ा दुख-भरी कहानी दे ध्यान क्या दे कोई तिरी जानिब लुत्फ़ कब तक ग़ज़ल पुरानी दे आज तक कितने फल दिए उस ने कौन ऐसे शजर को पानी दे