ग़म भुलाने का हमें कोई बहाना तो मिले शब-ए-फ़ुर्क़त का हर इक लम्हा सुहाना तो मिले मंदिर-ओ-मस्जिद-ओ-मा'बद हो कि मय-ख़ाना हो सर झुकाने के लिए कोई ठिकाना तो मिले बज़्म-ए-ख़ामोश की आहट हो कि पतझड़ का सुकूँ ऐश-ओ-ग़म हम को यहाँ शाना-ब-शाना तो मिले ये तसल्ली सही याद आई तो वो भी आए मेरे एहसास-ए-ग़म-ए-दिल का निशाना तो मिले सिर्फ़ तक़दीर में हो सहरा-नवर्दी जिस की मुझ सा दुनिया में कोई ऐसा दीवाना तो मिले अपने अश्कों पे उठा ले कोई इशरत का बोझ वक़्त की राह में अब ऐसा ज़माना तो मिले मश्क़-ए-यारान-ए-सितम सेहन-ए-गुलिस्ताँ में है सुब्ह-दम जश्न-ए-बहाराँ का फ़साना तो मिले शामियाना हो सितारों का मिरे आँगन में मेरी क़िस्मत में 'शफ़क़' ऐसा घराना तो मिले