ग़म फ़राहम हैं मगर उन की फ़रावानी नहीं ऐ गिराँ-जानी यहाँ कोई भी आसानी नहीं चार-सू इक बर्फ़-बस्ता अहद-ए-नम का राज है धूप में हिद्दत नहीं दरियाओं में पानी नहीं याद है क्या काम है इस शहर का क्या नाम है सब कुछ उस जैसा है लेकिन आसमाँ धानी नहीं ज़िंदगी के दुख अज़ल से ज़िंदगी के साथ हैं लोग फ़ानी हैं मगर लोगों के दुख फ़ानी नहीं ज़िंदगी भर सिर्फ़ उसे पूजा मगर घर बैठ कर पासदारान-ए-वफ़ा का काम दरबानी नहीं इक शजर के कोई दो पत्ते भी इक जैसे न थे मेरी दुनिया में किसी शय का कोई सानी नहीं