जाने क्या क्या मैं हार बैठा हूँ खो के अपना वक़ार बैठा हूँ मिलने आएँगे आज वो मुझ से इस लिए बे-क़रार बैठा हूँ बिफरी मौजें हैं फिर भी मैं यारो कर के दरिया को पार बैठा हूँ नोट-बंदी ने ऐसा मारा है सारी दौलत मैं हार बैठा हूँ आज तक अच्छे दिन नहीं आए फिर भी दिल तुझ पे वार बैठा हूँ तू हसीं है तो क्या हुआ जानाँ मैं भी सूरत निखार बैठा हूँ तुझ से मिलने की आरज़ू है तभी राह में मेरे यार बैठा हूँ ताकि माइल हो तू भी मेरी तरफ़ ले के मैं दिल में प्यार बैठा हूँ मैं भी तेरी हसीं निगाहों का हो के हमदम शिकार बैठा हूँ मैं हूँ 'साजिद' सुनाओगे क्या क्या सुन के बातें हज़ार बैठा हूँ