ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला हम ने मरना भी जो चाहा तो वसीला न मिला मुद्दतों बा'द जो आईने में झाँका हम ने इतने चेहरे थे वहाँ अपना ही चेहरा न मिला क़त्ल कर के वो ग़नीमों को जो वापस आए अपने ही घर में उन्हें कोई शनासा न मिला हम भी जा निकले थे सूरज के नगर में इक दिन वो अंधेरा था वहाँ अपना भी साया न मिला तिश्ना-लब यूँ तो ज़माने में कभी हम न रहे प्यास जो दिल की बुझा देता वो दरिया न मिला मिल गए हम को सनम-ख़ानों में कितने ही ख़ुदा ढूँडने पर कोई बंदा ही ख़ुदा का न मिला आप के शहर में पेड़ों का नहीं कोई शुमार दो घड़ी रुकने को लेकिन कहीं साया न मिला सब्ज़ पत्तों से मिला हम को बहारों का सुराग़ शाख़-ए-नाज़ुक पे मगर कोई शगूफ़ा न मिला मुस्तहक़ हम तिरी रहमत के न होने पाए तेरी दुनिया में कोई उज़्र ख़ता का न मिला ख़ुद-नुमाई के भी इस दौर में हम को 'साहिर' कोई क़ातिल न मिला कोई मसीहा न मिला