ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें ग़म भी रास न आया दिल को और ही कुछ सामान करें करने और कहने की बातें किस ने कहीं और किस ने कीं करते कहते देखें किसी को हम भी कोई पैमान करें भली बुरी जैसी भी गुज़री उन के सहारे गुज़री है हज़रत-ए-दिल जब हाथ बढ़ाएँ हर मुश्किल आसान करें एक ठिकाना आगे आगे पीछे एक मुसाफ़िर है चलते चलते साँस जो टूटे मंज़िल का एलान करें 'मीर' मिले थे 'मीरा-जी' से बातों से हम जान गए फ़ैज़ का चश्मा जारी है हिफ़्ज़ उन का भी दीवान करें