ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो क्यूँ बे-कार करो हो हुज्जत आगे बात बढ़ाओ हो क्यूँ थम थम कर क़दम रखो हो क्यूँ इतना घबराओ हो रात का सन्नाटा है मैं हूँ तुम किस से शरमाओ हो आओ अपने हाथ में ले कर हाथ हमारा देखो तो हम ने सुना है तुम सब की क़िस्मत का हाल बताओ हो पहले पहर जब आ न सके तुम आख़िर-ए-शब की फ़िक्र ही क्या अब तो दिल ही सुलग उट्ठा है अब क्यूँ दिया जलाओ हो इक दस्तूर सही दुनिया का ज़ख़्मों पर लफ़्ज़ों का ढेर ऐ लोगो कुछ समझो भी हो जो मुझ को समझाओ हो शाम नहीं ढलती किसी सूरत रात नहीं कटती किसी तौर अब तो बहुत दिल घबराए है अब तो बहुत याद आओ हो हैं अहबाब भी इक सरमाया लेकिन ये भी याद रहे उतनी ही आँच लगेगी 'शौकत' जितना तेज़ अलाव हो