ग़म को बाहम बहम न कीजे गर ग़म है तो ग़म का ग़म न कीजे यक नीम-निगह है सो भी कारी कुछ इस में से तो कम न कीजे गो हम हैं आशिक़-ए-वफ़ादार पर इतना भी सितम न कीजे बे-फ़ाएदा रोइए कहाँ तक अब जी में है चश्म नम न कीजे ग़ैरों के पढ़ाने को मेरा वस्फ़ इस तौर से ये करम न कीजे गो तेग़-ए-असील हैं ये अबरू हर दम इतना भी ख़म न कीजे गर जाम-ए-मय 'असर' लगे हाथ फिर ख़्वाहिश-ए-जाम-ए-जम न कीजे