ग़म तिरा ग़म भी है तस्कीन का पैग़ाम भी है है अगर इश्क़ में तकलीफ़ तो आराम भी है आमद-ओ-रफ़्त का है खेल-तमाशा सारा ज़िंदगी भी है नफ़स मौत का पैग़ाम भी है याद महदूद नहीं रोज़ा नमाज़ों पे फ़क़त दिन भी है रात भी है सुब्ह भी है शाम भी है ये बताते हैं लिफ़ाफ़े पे हमारे आँसू जज़्बा-ए-इश्क़ में डूबा हुआ पैग़ाम भी है नाम बदला है 'सदफ़' हस्ब-ए-ज़रूरत मैं ने नाम मा'बूद-ए-ख़ुदा ही की तरह राम भी है