हवा में तेज़-रवी है न जोश पानी में सुकूत-ए-मर्ग है सैलाब की रवानी में न कोई बात न झगड़ा न मुद्दआ' कोई झुलस रहा है मिरा शहर बद-गुमानी में बिला-सबब नहीं शरह-ए-हयात की सुर्ख़ी जिगर का ख़ून भी शामिल है तर्जुमानी में हुई तमाम चलो ज़हमत-ए-ख़रीदारी बला का लुत्फ़ है इस दौर की गिरानी में हुआ फ़क़ीर तो सिदरा पे आ गया आख़िर भटक गए थे क़दम जिस के हुक्मरानी में ब-वक़्त-ए-नज़्अ' नज़र आ रहा है वो मा'बूद जो हम को याद न आया भरी जवानी में 'मजाज़' जिस की सताइश में शे'र कहता हूँ बस एक वो ही नहीं है मिरी कहानी में