ग़म उस को सारी रात सुनाया तो क्या हुआ या रोज़ उठ के सर को फिराया तो क्या हुआ उन ने तो मुझ को झूटे भी पूछा न एक बार मैं ने उसे हज़ार जताया तो क्या हुआ ख़्वाहाँ नहीं वो क्यूँ ही मैं अपनी तरफ़ से यूँ दिल दे के उस के हाथ बिकाया तो क्या हुआ अब सई कर सिपहर कि मेरे मूए गए उस का मिज़ाज मेहर पे आया तो क्या हुआ मत रंजा कर किसी को कि अपने तो ए'तिक़ाद दिल ढाए कर जो का'बा बनाया तो क्या हुआ मैं सैद-ए-नातवाँ भी तुझे क्या करूँगा याद ज़ालिम इक और तीर लगाया तो क्या हुआ क्या क्या दुआएँ माँगी हैं ख़ल्वत में शैख़ यूँ ज़ाहिर जहाँ से हाथ उठाया तो क्या हुआ वो फ़िक्र कर कि चाक-ए-जिगर पावे इल्तियाम नासेह जो तू ने जामा सुलाया तो क्या हुआ जीते तो 'मीर' उन ने मुझे दाग़ ही रक्खा फिर गोर पर चराग़ जलाया तो क्या हुआ