हम दिल को लिए बर-सर-ए-बाज़ार खड़े हैं हैरान-ए-तमन्ना-ए-ख़रीदार खड़े हैं ग़ैरों से वो ख़ल्वत में है मशग़ूल-ए-ज़राफ़त हम रश्क के मारे पस-ए-दीवार खड़े हैं उन शर्म-ज़दों को भी बुला सामने अपने जो शर्म के मारे पस-ए-दीवार खड़े हैं अज़-बहर-ए-ख़ुदा बाम पर आ ऐ बुत-ए-काफ़िर कूचे में तिरे तालिब-ए-दीदार खड़े हैं ढब पाऊँ तो मैं उस से कहूँ हाल-ए-दिल अपना इस बुत को तो घेरे हुए अग़्यार खड़े हैं है उस की सवारी की ख़बर सैर-ए-चमन को और अहल-ए-तमाशा सर-ए-बाज़ार खड़े हैं जूँ नक़्श-ए-क़दम बैठने की जा नहीं मिलती इस कूचे में हम इस लिए नाचार खड़े हैं कूचा है तिरा वादा-गह-ए-ख़ल्क़ कि जिस में दो-चार जो बैठे हैं तो दो-चार खड़े हैं हो अज़्म-ए-सफ़र तुझ को तो ऐ 'मुसहफ़ी' अब भी चलने के लिए क़ाफ़िले तय्यार खड़े हैं