ग़म-ए-दरूँ का कोई तर्जुमाँ नहीं न सही जो ज़ख़्म-ए-दिल भी दहान-ए-फ़ुग़ाँ नहीं न सही ये कम नहीं है कि आँखों में दिल उतर आया तुम्हारे सामने मुँह में ज़बाँ नहीं न सही यहाँ तो कोई नहीं जिस का दिल हिला दोगे जिगर में ताक़त-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नहीं न सही तुझी से शिक्वा-ए-दर्द-ए-निहाँ करें ऐ दिल तिरे सिवा जो कोई राज़दाँ नहीं न सही चमन में आग लगा दी जो बर्क़-ए-सोज़ाँ ने तो शाख़-ए-गुल पे मिरा आशियाँ नहीं न सही अभी कुछ और घरौंदे बनाओ यादों के ग़ुबार-ए-राह तो है कारवाँ नहीं न सही ज़मीं तो पाँव तले है यही ग़नीमत है हमारे ज़ेर-ए-क़दम आसमाँ नहीं न सही