ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-जाँ है कि नहीं दिल-सिताँ सिलसिला-ए-ग़म-ज़दगाँ है कि नहीं हर नफ़स बज़्म-ए-गुलिस्ताँ में ग़ज़ल-ख़्वाँ था कभी हर नफ़स नाला-कशाँ नौहा-कुनाँ है कि नहीं हर नज़र नग़्मा-सरा अंजुमन-आरा थी कभी हर नज़र हैरती-ए-रंग-ए-जहाँ है कि नहीं हर ज़बाँ पर था कभी तज़किरा-ए-दौर-ए-बहार हर ज़बाँ शिकवा-गर-ए-जौर-ए-ख़िज़ाँ है कि नहीं मय-चकाँ बादा-निशाँ थे लब-ए-गुल-रंग कभी लब-ए-गुल-रंग पे ज़ख़्मों का गुमाँ है कि नहीं सुर्मा-ए-चश्म-ए-इनायत की हिकायत छोड़ो आज हर आँख में आहों का धुआँ है कि नहीं क़ाफ़िले जाने घटाओं के कहाँ उतरेंगे हर ख़म-ए-ज़ुल्फ़ ब-हसरत-निगराँ है कि नहीं दश्त-ए-वहशत से नहीं कम ये जहान-ए-गुल-ओ-बू सूरत-ए-रेग-ए-रवाँ उम्र-ए-रवाँ है कि नहीं नग़्मा-ए-बाद-ए-बहारी जिसे तुम कहते हो जरस-ए-क़ाफ़िला-ए-गुल की फ़ुग़ाँ है कि नहीं न तो बुलबुल की नवा है न सदा-ए-ताऊस सेहन-ए-गुलज़ार में अब अम्न-ओ-अमाँ है कि नहीं मुझ से क्या पूछते हो कौन यहाँ तक पहुँचा सुर्ख़ी-ए-ख़ार-ए-बयाबाँ से अयाँ है कि नहीं ज़िंदगी कुछ भी सही फिर भी बड़ी दौलत है मौत सी शय भी यहाँ जिंस-ए-गिराँ है कि नहीं सूरत-ए-लुत्फ़-ओ-करम ये हो तो दिल क्यूँ न जले आग पत्थर के भी सीने में निहाँ है कि नहीं ज़ुल्म चुप-चाप सहे जाओगे आख़िर कब तक ऐ असीरान-ए-क़फ़स मुँह में ज़बाँ है कि नहीं ये अदब-गाह-ए-मोहब्बत है जो चुप हूँ 'ताहिर' वर्ना याँ कौन सा अंदाज़-ए-बयाँ है कि नहीं