ग़म-ए-दिल को बदल जाने की ज़िद है मगर ख़ुशियों को टल जाने की ज़िद है बिगड़ती जा रही है मेरी दुनिया मगर मुझ को सँभल जाने की ज़िद है हर इक तूफ़ाँ को पीछे छोड़ आऊँ हवादिस से निकल जाने की ज़िद है मिरी फ़ितरत बदल जाए तो कैसे तिरी बातों को खुल जाने की ज़िद है तिरे ज़ानू पे मेरा सर है लेकिन मुक़द्दर को मचल जाने की ज़िद है मिरे जज़्बात को तस्कीन देना समुंदर को उबल जाने की ज़िद है ख़िलाफ़-ए-ज़ोर-ए-फ़ितरत 'दौर' बेहतर मगर फ़िक्रों को पल जाने की ज़िद है