ग़म-ए-दुनिया को बस मेरी तरफ़ आने की जल्दी है हर अच्छे वक़्त को मुझ से बिछड़ जाने की जल्दी है बड़ा नुक़सान कर बैठी मैं अपना जल्द-बाज़ी में उसी को खो दिया मैं ने जिसे पाने की जल्दी है तुम इतना मुख़्तसर सा वक़्त ले कर आए ही क्यों थे इधर आने में देरी की उधर जाने की जल्दी थी हटा कर राह के काँटे निकल आई सलीक़े से मुझे जब मंज़िल-ए-मक़्सूद को पाने की जल्दी थी 'सिया' सब कह रहे हैं ज़िंदगी की और अब देखो मगर दिल की तमन्नाओं को मर जाने की जल्दी है