ग़म-ए-दुनिया नहीं फिर कौन सा ग़म है हम को फ़िक्र-ओ-अंदेशा-ए-उक़बा से भी रम है हम को दहन-ए-ग़ुन्चा से पैग़ाम-ए-वफ़ा सुनते हैं ग़ाज़ा-ए-आरिज़-ए-सद-हस्त-ए-अदम है हम को क़ौल ये सच है कि ख़ुद-कर्दा का दरमाँ क्या है दावर-ए-हश्र पे नाहक़ का भरम है हम को अगले लुक़्मों में नहीं क़ंद-ए-मुकर्रर का मज़ा सख़्त बे-लुत्फ़-ए-हयात-ए-पैहम है हम को ज़ीस्त की कश्मकश और मर्ग की क़ुर्बत का अलम आमद-ओ-रफ़्त-ए-नफ़स तेग़-ए-दो-दम है हम को बैठे बैठे जो कटे फिर तग-ओ-दौ से हासिल हर-नफ़स जादा-ए-हस्ती में क़दम है हम को ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आती है तस्वीर-ए-सनम सर-ब-सर रू-कश-ए-सद-दैर-ओ-हरम है हम को बार-ए-ग़म बार से एहसाँ के बदल जाता है तौक़-ए-गर्दन कशिश-ए-काफ़-ए-करम है हम को हाल-ए-दिल लिखते न लोगों की ज़बाँ में पड़ते वज्ह-ए-अंगुश्त-नुमाई ये क़लम है हम को आँख क्या डालिए उस गुल पे जो कुम्हला जाए 'कैफ़ी' अपना ही ये दिल बाग़-ए-इरम है हम को