ग़म-ए-दुनिया पे ग़म-ए-ज़ात पे रो देते हैं ग़म के मारे हुए हर बात पे रो देते हैं हम को रोना है तो बस आज का ही रोना है लोग गुज़रे हुए हालात पे रो देते हैं याद आता है किसी बात पे रोए थे कभी अब ये आलम है कि हर बात पे रो देते हैं हम तो ख़ुद मोड़ दिया करते हैं हालात का रुख़ हम नहीं वो कि जो हालात पे रो देते हैं ये अदा देखी है हम ने तिरे दीवानों की जिस पे हँसते हैं उसी बात पे रो देते हैं आख़िरी बार कोई हम से मिला था आ कर याद आती है तो उस रात पे रो देते हैं कल जो रुख़ फेर लिया करते थे मुझ से 'अख़्तर' आज वो भी मिरे हालात पे रो देते हैं