हाए ये ख़ौफ़ ये डर रात कहाँ गुज़रेगी दिन तो कट जाएगा पर रात कहाँ गुज़रेगी कोई दीवार न दर रात कहाँ गुज़रेगी यूँ सर-ए-राहगुज़र रात कहाँ गुज़रेगी कोई साथी है न हमदम न कोई हम-साया और फिर लम्बा सफ़र रात कहाँ गुज़रेगी अजनबी शहर में रह रह के ख़याल आता है मेरी मंज़ूर-ए-नज़र रात कहाँ गुज़रेगी दिन तो कैसे भी गुज़र जाएगा ऐ हम-सफ़रो शाम के बा'द मगर रात कहाँ गुज़रेगी ग़म से फ़ुर्सत ही नहीं है कि ये सोचें 'अख़्तर' किस जगह होगी सहर रात कहाँ गुज़रेगी