ग़म-ए-हयात को लिक्खा किताब की मानिंद और एक नाम कि है इंतिसाब की मानिंद न जाने कह दिया किस बे-ख़ुदी में साक़ी ने सुरूर-ए-तिश्ना-लबी है शराब की मानिंद बहुत क़रीब से देखा तो इंकिशाफ़ हुआ वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद मिरा सवाल कि किस ने मुझे तबाह किया तिरा सुकूत मुकम्मल जवाब की मानिंद मैं अपनी आँखों को रखता हूँ बा-वज़ू हर-दम कि तेरा ज़िक्र मुक़द्दस किताब की मानिंद मुझे अज़ीज़ हैं ख़्वाबों की किर्चियाँ भी 'सबा' किसी निगाह में होंगी अज़ाब की मानिंद