है दुश्मनों से भी वाबस्ता हुस्न-ए-ज़न मेरा यही कमाल है मुझ में यही है फ़न मेरा मैं मौसमों के तग़य्युर से काँप उठता हूँ भरी बहार में उजड़ा था कल चमन मेरा मैं दश्त छोड़ के आया हूँ ऐ नगर वालो कि लगते लगते लगेगा यहाँ पे मन मेरा है इतनी भूक मिरे वारिसों को विर्से की ख़रीद लाए मिरे जीते-जी कफ़न मेरा उसी ने एक नया ज़ख़्म दे के छोड़ दिया कि दस्तियाब जिसे भी हुआ बदन मेरा तमाम शहर ही नक़्क़ाद हो गया 'आदिल' परख रहे हैं कसौटी पे सब सुख़न मेरा