ग़म-ए-ज़ीस्त हम से लिया जाए ना बिना ग़म भी लेकिन जिया जाए ना तिरी मस्त आँखों ने बख़्शा सुरूर कि अब मय का प्याला पिया जाए ना इनायत है ग़ैरों पे हर दम तिरी सितम भी तो हम पर किया जाए ना करम चाहता हूँ फ़क़त तुझ से मैं सहारा किसी का लिया जाए ना दिए ज़ख़्म यादों ने दिल पर बहुत जवाब हम से लेकिन दिया जाए ना 'असद' आप की है निराली अदा कि दुश्मन को भी दम दिया जाए ना