ग़म-ए-जानाँ से दिल मानूस जब से हो गया मुझ को हँसी अच्छी नहीं लगती ख़ुशी अच्छी नहीं लगती यक़ीनन ज़ुल्म की हर बात सुन कर कहने वाले से कहेगा ये हर अच्छा आदमी अच्छी नहीं लगती गली तेरी बुरी लगती नहीं थी जान-ए-जाँ लेकिन नहीं है जब से तू तेरी गली अच्छी नहीं लगती ख़ुशी से मौत आए अब मुझे मरना गवारा है गए वो जब से मुझ को ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती न छेड़ो हम-नशीनों शाम-ए-ग़म 'पुरनम' को रोने दो मुसीबत में किसी की दिल-लगी अच्छी नहीं लगती