ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं हम किसी अफ़्साना-ए-ग़मनाक के अफ़राद हैं गर्दिश-ए-अफ़्लाक के हाथों बहुत बर्बाद हैं हम लब-ए-अय्याम पर इक दुख भरी फ़रियाद हैं हाफ़िज़े पर इशरतों के नक़्श बाक़ी हैं अभी तू ने जो सदमे सहे ऐ दिल तुझे भी याद हैं रात भर कहते हैं तारे दिल से रूदाद-ए-शबाब इन को मेरी वो शबाब-अफ़रोज़ रातें याद हैं 'अख़्तर'-ए-ना-शाद की परछाईं से बचते रहें जो ज़माने में शगुफ़्ता-ख़ातिर ओ दिल-ए-शाद हैं