ग़म याँ तो बिका हुआ खड़ा है फ़िदवी है फ़िदा हुआ खड़ा है हिलता नहीं तेरे दर से ये इश्क़ मुद्दत से मिला हुआ खड़ा है ख़ूनीं-कफ़न-ए-शहीद-ए-उल्फ़त दूल्हा सा बना हुआ खड़ा है टुक गोशा-ए-चशम इधर भी कोई कोने से लगा हुआ खड़ा है दामन का है घेर गिर्द-ए-जानाँ क्यूँ जी वो घिरा हुआ खड़ा है यूँ दिल को बग़ल में मैं ने पाला ये मुझ पे पिला हुआ खड़ा है क्या समझे नमाज़-ए-इश्क़ नासेह क़िबले से भरा हुआ खड़ा है मुजरे को तुम्हारे अब्रूओं के मेहराब झुका हुआ खड़ा है मीज़ान नहीं मिलती मेरी उस की ग़ुस्सा में पिला हुआ खड़ा है घर से तो निकल कि दर पे 'एहसान' क्या ग़म में घिरा हुआ खड़ा है पलकों से गिरी है अश्क टप टप पट से वो लगा हुआ खड़ा है