है क़त्ल-गह-ए-शौक़ में ख़ंजर हमा-तन-चश्म मंज़र हमा-तन-गुल गुल-ए-मंज़र हमा-तन-चश्म है कौन जो आशुफ़्ता-मिज़ाजी की रखे लाज उस कू-ए-मलामत के हैं पत्थर हमा-तन-चश्म कब आएगा इंसाफ़ का दिन दावर-ए-महशर इक उम्र से मैं हूँ सर-ए-महशर हमा-तन-चश्म ये सुब्ह तो वो सुब्ह नहीं जिस की तलब में तारे सर-ए-मिज़्गाँ रहे शब भर हमा-तन-चश्म ऐ जान-ए-ग़ज़ल तू है कहाँ तेरे लिए है 'ख़ावर' हमा-तन-दिल दिल-ए-'ख़ावर' हमा-तन-चश्म