ग़नीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी कि हार मान ली लेकिन मदद नहीं माँगी हज़ार शुक्र कि हम अहल-ए-हर्फ़-ए-ज़िंदा ने मुजाविरान-ए-अदब से सनद नहीं माँगी बहुत है लम्हा-ए-मौजूद का शरफ़ भी मुझे सो अपने फ़न से बक़ा-ए-अबद नहीं माँगी क़ुबूल वो जिसे करता वो इल्तिजा नहीं की दुआ जो वो न करे मुस्तरद नहीं माँगी मैं अपने जामा-ए-सद-चाक से बहुत ख़ुश हूँ कभी अबा-ओ-क़बा-ए-ख़िरद नहीं माँगी शहीद जिस्म सलामत उठाए जाते हैं जभी तो गोर-कनों से लहद नहीं माँगी मैं सर-बरहना रहा फिर भी सर-कशीदा रहा कभी कुलाह से तौक़ीर-ए-क़द नहीं माँगी अता-ए-दर्द में वो भी नहीं था दिल का ग़रीब 'फ़राज़' मैं ने भी बख़्शिश में हद नहीं माँगी