गर अब्र घिरा हुआ खड़ा है आँसू भी तुला हुआ खड़ा है हैरान है किस का जो समुंदर मुद्दत से रुका हुआ खड़ा है है मौसम-ए-गुल चमन में हर नख़्ल फूलों से लदा हुआ खड़ा है शमशाद बराबर उस के क़द के दहशत से बचा हुआ खड़ा है है चाक किसी का जैब ओ दामाँ कोई ख़स्ता लुटा हुआ खड़ा है तू आ के तो देख दर पे तेरे क्या साँग बना हुआ खड़ा है ख़ल्वत हो कभू तो यूँ कहे वो कोई दर से लगा हुआ खड़ा है मैं ख़ैर है गर कहूँ तो बोले वो देख छुपा हुआ खड़ा है ख़ूनीं कफ़न-ए-शहीद-ए-उल्फ़त दूल्हा सा बना हुआ खड़ा है तेरा ही है इंतिज़ार उस को नाक़ा तो कसा हुआ खड़ा है ऐ जान निकल कि 'मुसहफ़ी' का अस्बाब लदा हुआ खड़ा है