ये कैसी सरगोशी-ए-अज़ल साज़-ए-दिल के पर्दे हिला रही है मिरी समाअत खनक रही है कि तेरी आवाज़ आ रही है हवादिस-ए-रोज़गार मेरी ख़ुशी से क्या इंतिक़ाम लेंगे कि ज़िंदगी वो हसीन ज़िद है कि बे-सबब मुस्कुरा रही है तिरा तबस्सुम फ़रोग़-ए-हस्ती तिरी नज़र ए'तिबार-ए-मस्ती बहार इक़रार कर रही है शराब ईमान ला रही है फ़साना-ख़्वाँ देखना शब-ए-ज़िंदगी का अंजाम तो नहीं है कि शम्अ के साथ रफ़्ता रफ़्ता मुझे भी कुछ नींद आ रही है अगर कोई ख़ास चीज़ होती तो ख़ैर दामन भिगो भी लेते शराब से तो बहुत पुराने मज़ाक़ की बास आ रही है ख़िरद के टूटे हुए सितारे 'अदम' कहाँ तक चराग़ बनते जुनूँ की रौशन रविश है आख़िर दिलों को रस्ते दिखा रही है