गर अदू तक़दीर है तदबीर रहने दीजिए दोस्त का दिल में हमारे तीर रहने दीजिए हैं जो आशिक़ काम मज़दूरों का वो करते नहीं ज़िम्मा-ए-फ़रहाद जू-ए-शीर रहने दीजिए लैला-ओ-मजनूँ की इक काग़ज़ पे होती है शबीह रू-ब-रू उस के मिरी तस्वीर रहने दीजिए है जुनूँ फ़सली करो ज़ंजीर तार-ए-अश्क से तौर पर मेरे मिरी तदबीर रहने दीजिए सीम-ओ-ज़र बनता है ख़ाक-ए-कुश्ता-दिल से आप के पास अपने जान कर इक्सीर रहने दीजिए आस्तीं से हाथ बाहर हो न ऐ जान-ए-जहाँ बस मियाँ अंदर ही ये शमशीर रहने दीजिए तीर-ए-बे-पैकाँ निशाना तोड़ता है कब 'वक़ार' मुँह की मुँह में आह-ए-बे-तासीर रहने दीजिए