गर दिल में तबस्सुम का इक तीर उतर जाए नौ-ख़ास्ता ग़ुंचे की तक़दीर सँवर जाए जब जब कोई तूफ़ाँ सा इस दिल से गुज़र जाए वो चेहरा-ए-रंगीं भी कुछ और निखर जाए जब दिल पे मोहब्बत का तूफ़ान गुज़र जाए शबनम से शरर टपके शो'लों से असर जाए दीवाना तिरे रुख़ का और मौत से डर जाए जिस दिल में सदाक़त हो मुमकिन नहीं मर जाए ये ख़ून-ए-मोहब्बत है ख़ंजर न ठहर जाए इक महशर-ए-बेताबी रग रग में उतर जाए ये राह-ए-मोहब्बत है जो इस से गुज़र जाए परवाह नहीं उस को ज़र जाए कि सर जाए उल्फ़त की ज़फ़र-मंदी उस रोज़ मैं समझूँगा जब आह मिरी तेरे सीने में उतर जाए इस दिल पे गुज़रती है कैफ़ियत-ए-रंगा-रंग तूफ़ाँ सा उमड आए दरिया सा उतर जाए है ख़ूब मगर फिर भी वो पैकर-ए-रंग-ओ-बू कुछ और निखर जाए कुछ और सँवर जाए क्या तुर्फ़ा-तमाशा है फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत से जन्नत से बशर निकले जन्नत में बशर जाए