सुनो जब ग़ैब का पर जागता है हवाओं का समुंदर जागता है सभों में जिस ने की तक़्सीम नींदें ख़ुदा है जो बराबर जागता है अगरचे बुझ चुकी है मेरी हैरत मगर अब भी वो मंज़र जागता है बड़ी दिलचस्प होती है कहानी मैं सोता हूँ तो बिस्तर जागता है किसी दिन मार दूँगा आइने पर जो मुझ में एक पत्थर जागता है यक़ीं जितनी भी गहरी नींद में हो कोई वसवास अंदर जागता है चढ़ाओ चादरें सोए हुओं पर ये करने से मुक़द्दर जागता है हम उस घर की हिफ़ाज़त कर रहे हैं मिरे सोते ही झींगुर जागता है मुक़द्दम कौन है ये बात छोड़ो वजूदों में भी जौहर जागता है छुपी बैठी है सहराओं में शबनम कहीं खेतों में बंजर जागता है मुझे छूती है वो 'असवद' समझ कर बदन में जिस के मरमर जागता है