गर दोस्त भी सौ जफ़ा करेगा दुश्मन बेचारा क्या करेगा जब बंद-ए-क़बा वो वा करेगा गुल चाक अपनी क़बा करेगा कर के कोई चाह क्या करेगा फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ क्या करेगा दाग़ अपना चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल ता सुब्ह-ए-अबद जला करेगा जुज़ बे-कसी अपना और है कौन जो दा'वा-ए-ख़ूँ-बहा करेगा सर-गश्तगी की न राह हो तय जब तक कि न सर को पा करेगा जब कट के गिरेगा उस के पा पर सर सज्दा-ए-शुक्र अदा करेगा जब उम्र ही बेवफ़ा है 'बेसब्र' फिर कौन भला वफ़ा करेगा