गर एक शब भी वस्ल की लज़्ज़त न पाए दिल फिर किस उमीद पर कोई तुम से लगाए दिल इक दिल तुझे मुदाम सताने को चाहिए तेरे लिए कहाँ से कोई रोज़ लाए दिल उतरा न आ के याँ कोई जुज़ कारवान-ए-ग़म मेहमाँ-सरा से कम नहीं यारो सरा-ए-दिल कूचे से अपने हम को उठाता है किस लिए बैठें हैं हम जहान से अपना उठाए दिल कहते हैं दर्दमंद 'तरक़्क़ी' का हाल देख या रब कभी किसी पे किसी का न आए दिल