गर हो न ख़फ़ा तो कह दूँ जी की इस दम तुम्हें याद है किसी की जो सामने हो कहे उसी की मुँह देखी है बात आरसी की फूलों का कभी न हार पहना बध्धी जो पड़ी तिरी छड़ी की गुल-गीर ने काट कर सर-ए-शम्अ' परवाने से शब कटी जली की तस्बीह में भी हो तार-ए-ज़ुन्नार ख़ातिर न शिकस्ता कर किसी की आया शब-ए-मह में वो जो ता-फ़र्श चादर हुई गर्द चाँदनी की सय्याद कभी तू ज़ब्ह कर डाल मुड़ जाएगी बाड़ क्या छुरी की आईना बर्क़ में है लाज़िम तस्वीर खींचे तिरी हँसी की तरतीब-ए-कुहन की वज़्अ' ऐ 'अर्श' हम ने दीवान में नई की