रूह को जगमगाने की कोशिश न की ज़ीस्त ग़फ़लत में सारी बसर हो गई रात दिन हो गए सब के सब राएगाँ मेरी हस्ती किधर से किधर हो गई मुझ को आवाज़ देते रहे रोज़-ओ-शब तेरे लुत्फ़-ओ-करम में ये आ पाई कब तू नहीं जब मिला तो हुआ ये ग़ज़ब हर तमन्ना-ए-दिल दर-ब-दर हो गई तुझ को पाना तो यारब था आसाँ बहुत तुझ को पाने की कोशिश ही मैं ने न की ज़िंदगी हर क़दम जैसे इक बोझ सी मेरी साँसों की रफ़्तार पर हो गई इस कहानी की कोई हक़ीक़त नहीं ज़िंदगानी की कोई हक़ीक़त नहीं अपने होने से वो बा-ख़बर हो गए तेरे होने की जिन को ख़बर हो गई लब पे 'नीलम' के हर दम यही है दुआ ऐसे बंदों में रखना उसे भी सदा जिन पे तेरी इनायत का है सिलसिला तेरी रहमत की जिन पर नज़र हो गई