गर ख़ुदा का'बे में रहता है तो बुत-ख़ाने में कौन हर है गंगा जल में तो ज़मज़म के पैमाने में कौन क़ैस को जब ले चले बस्ती की जानिब यूँ कहा लैला आबादी में रहती है तो वीराने में कौन दार पर उस को चढ़ाया पर न ये समझा कोई था अनल-हक़ कह रहा मंसूर दीवाने में कौन किस से बातें कर रहा है मुझ को भी ज़ाहिद दिखा छुप के बैठा है तेरी तस्बीह के दाने में कौन हो के तुम पीर-ए-मुग़ाँ मस्जिद को 'असग़र' चल दिए ये तो बतलाओ कि अब जाएगा मयख़ाने में कौन