हरगिज़ बुतों के दिल में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा नहीं है ये संग-दिल हैं इन में बू-ए-वफ़ा नहीं है मल मल के ख़ूब धो लो आख़िर तो होगा ज़ाहिर है ख़ून आशिक़ों का रंग-ए-हिना नहीं है ये देखती न उन को क्यों उन के साथ जाता तक़्सीर आँख की है दिल की ख़ता नहीं है बाग़-ए-जहाँ में हम ने हर एक गुल को सूँघा ये फूल काग़ज़ी हैं ख़ुशबू ज़रा नहीं है 'असग़र' की कुछ न पूछो मय-ख़ाना में पड़ा है इस बंदा-ए-ख़ुदा को ख़ौफ़-ए-ख़ुदा नहीं है