गर मेरे संग में नहीं है तू फिर किसी ढंग में नहीं है तू कुछ तो सादा लिबास हूँ मैं भी और कुछ रंग में नहीं है तू अब निकालूँ कहाँ कहाँ से तुझे मेरे किस अंग में नहीं है तू ये मोहब्बत है कोई खेल नहीं यूँ ही इस जंग में नहीं है तू मुझ को लगती है शोर ये दुनिया मेरे आहंग में नहीं है तू