गर ये हिम्मत है कि तूफ़ान की ज़द पर रहिए ना-ख़ुदाओं के कमालात से बच कर रहिए घर है शीशे का तो इस दौर में जीने के लिए संग-रेज़ों की क़बा ओढ़ के दर पर रहिए दूर बहती हुई आकाश की गंगा से परे आसमाँ ढूँड न पाएँ यूँ सिमट कर रहिए ये ख़बर है कि कोई बर्क़ गिरेगी मुझ पर ये ख़बर सच है तो फिर आज के दिन घर रहिए मेरे दिल में उतर आया है कोई तूफ़ाँ सा ज़ब्त कहता है कि इदराक के पैकर रहिए क़त्ल-गाहों में भी सब्क़त तभी दी जाएगी अपनी गर्दन पे सलीब अपनी उठा कर रहिए तुम को हालात से शिकवा न सही फिर भी 'अनीस' अपने जज़्बात की यलग़ार से डर कर रहिए