गरचे ऐसा सदा नहीं होता हाँ कभी कुछ पता नहीं होता लोग मिलने को मिल ही जाते हैं उन से पर सामना नहीं होता रस्म-ए-दुनिया निभा रहे हैं हम ख़ुद से ही राब्ता नहीं होता बिन पिए भी कई बहकते हैं हम को पी कर नशा नहीं होता उन को बुत ही समझ के पूजा था पूजने से ख़ुदा नहीं होता कहने सुनने से क्या नहीं होता आदमी यूँ बुरा नहीं होता ये घड़ी अब कि आन पहुँची है दिल में वो वलवला नहीं होता बे-ग़रज़ कौन है यहाँ 'ज़ाहिद' मिल के भी फ़ाएदा नहीं होता