गरचे ऐ दिल आशिक़-ए-शैदा है तू लेकिन अपने काम में यकता है तू आशिक़ ओ माशूक़ करता है जुदा ऐ फ़लक ये काम भी करता है तू लाख पर्दे गर हों तेरे हुस्न पर कोई पर्दों में छुपा रहता है तू हाल-ए-दिल कहने लगूँ हूँ मैं तो शोख़ मुझ से यूँ कहता है ''क्या बकता है तू'' पास बैठा उस के मैं रोया किया यूँ न पूछा मुझ से ''क्यूँ रोता है तू'' रात दिन तू है मिरी आग़ोश में मैं तिरा साहिल मिरा दरिया है तू बज़्म में उस तुंद-ख़ू की दौड़ दौड़ काम क्या? क्यूँ? किस लिए जाता है तू वाँ नहीं मुतलक़ तिरा मज़कूर भी 'मुसहफ़ी' किस बात पर भूला है तू