कल सीं बे-कल है मिरा जी यार कूँ देखा न था क्यूँ न होवे बेताब दिल दिलदार कूँ देखा न था है बजा गर होवे ग़ज़ल-ख़्वाँ मिस्ल-ए-बुलबुल दिल मिरा नौ-बहार-ए-गुलशन-ए-दीदार कूँ देखा न था क्यूँकि होवे ज़ाहिद-ए-ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार उस ने सारी उम्र में ज़ुन्नार कूँ देखा न था अब मुशब्बक हो गया उस तीर-ए-मिज़्गाँ के तुफ़ैल जिस दिल-ए-नाज़ुक ने नोक-ए-ख़ार कूँ देखा न था अबरू-ए-पुर-चीं कूँ तेरे देख दिल हैराँ हुआ क्या मगर शमशीर-ए-जौहर-दार कूँ देखा न था सीना-ए-गुलदार मेरा उस कूँ आया है पसंद यार ने शायद कभी गुलज़ार कूँ देखा न था देख अश्क-ए-गर्म कूँ मेरे कहा उस ने 'सिराज' मैं कभी इस अब्र-ए-आतिश-बार कूँ देखा न था