गरचे सौ बार ग़म-ए-हिज्र से जाँ गुज़री है फिर भी जो दिल पे गुज़रती थी कहाँ गुज़री है आप ठहरे हैं तो ठहरा है निज़ाम-ए-आलम आप गुज़रे हैं तो इक मौज-ए-रवाँ गुज़री है होश में आए तो बतलाए तिरा दीवाना दिन गुज़ारा है कहाँ रात कहाँ गुज़री है ऐसे लम्हे भी गुज़ारे हैं तिरी फ़ुर्क़त में जब तिरी याद भी इस दिल पे गराँ गुज़री है हश्र के बा'द भी दीवाने तिरे पूछते हैं वो क़यामत जो गुज़रनी थी कहाँ गुज़री है ज़िंदगी 'सैफ़' लिए क़ाफ़िला अरमानों का मौत की रात से बेनाम-ओ-निशाँ गुज़री है