दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया मैं गोर में चराग़-ए-सर-ए-शाम ले गया की तर्क मैं ने शैख़ ओ बरहमन की पैरवी दैर-ओ-हरम में मुझ को तिरा नाम ले गया दोज़ख़ में जल गया कभी जन्नत में ख़ुश रहा मर कर भी साथ गर्दिश-ए-अय्याम ले गया मैं जुस्तुजू-ए-कुफ़्र में पहुँचा ख़ुदा के पास काबा तक इन बुतों का मुझे नाम ले गया पहना कफ़न तो कूचा-ए-क़ातिल में पाई राह काबा में मुझ को जामा-ए-एहराम ले गया नफ़रत हुई दो-रंगी-ए-लैल-ओ-नहार से मैं सुब्ह ओ शाम उस को लब-ए-बाम ले गया कुछ लुत्फ़ इश्क़ का न मिला जीते-जी 'मुनीर' नाहक़ का रंज मुफ़्त का इल्ज़ाम ले गया