गर्द-ए-सफ़र में आँख से ओझल कितने ही रह-गीर हुए जितने साया-दार शजर थे राह में दामन-गीर हुए जीवन भर का बंधन हम तो घर से तोड़ के निकले थे लेकिन कुछ अन-जाने रिश्ते पैरों की ज़ंजीर हुए खेल ही खेल में एक खिलौना हाथ से गिर कर टूट गया नन्हे मुन्ने हँसते बच्चे अश्कों की तस्वीर हुए हम ने जो तहरीरें लिक्खीं सब की सब मतरूक हुईं वक़्त के हाथों हम भी कैसी बे-मा'नी तफ़्सीर हुए