हर चेहरा न जाने क्यूँ घबराया हुआ सा है बेचैन सा लगता है तड़पाया हुआ सा है क्या धोका नया कोई खाया है मोहब्बत में हर उ'ज़्व-ए-बदन उस का थर्राया हुआ सा है आँखों में चमक सी है रुख़्सार में सुर्ख़ी सी आग़ोश में उल्फ़त की शरमाया हुआ सा है खिलने की तमन्ना थी ज़ुल्फ़ों के गुलिस्ताँ में दिल टूट गया गुल का मुरझाया हुआ सा है खुलने में क़बाहत है गेसू-ए-मोहब्बत को चेहरा शब-ए-हसरत का पथराया हुआ सा है अल्फ़ाज़ की आँखों से बरसात है अश्कों की लहजा ग़म-ए-जानाँ से भर्राया हुआ सा है नफ़रत की शुआओं की यलग़ार है हर जाँ पर जिस क़ल्ब में भी झाँको कुम्हलाया हुआ सा है इल्हाद का हमला है 'जावेद' हर इक जानिब आलम का ये आलम है पगलाया हुआ सा है