गर्दिश-ए-वक़्त पे हम गहरी नज़र रखते हैं अपने दुश्मन को परखने का हुनर रखते हैं दोस्तो दिल के चराग़ों को जलाते हैं हम बे-सहारों के लिए सोज़-ए-जिगर रखते हैं अपनी ख़्वाहिश को ज़बाँ पर नहीं लाते लेकिन हम भी इस दिल में उमीदों का नगर रखते हैं ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में समझते हैं ज़माने वाले हम मगर सारे ज़माने की ख़बर रखते हैं क्यों डराता है हमें दार-ओ-रसन से बातिल हक़-परस्ती के लिए दार पे सर रखते हैं दाद देते हैं हमें राह के काँटे भी 'नदीम' आबला-पा हैं मगर अज़्म-ए-सफ़र रखते हैं