गर्दिश-ए-अर्ज़ रुके शब है गुज़रने के लिए कोई उट्ठा है सितारों से उतरने के लिए ज़िंदगी तेरे मसाइल का सुलझना तो अलग किस को फ़ुर्सत है यहाँ ग़ौर भी करने के लिए शख़्सियत-साज़ मोहब्बत ने बदल दी दुनिया अब वो सूरत कहाँ बाक़ी है मुकरने के लिए लाख कर जाए तरक़्क़ी फ़न-ए-मरहम-साज़ी बात के ज़ख़्म तो खुलते नहीं भरने के लिए मुश्किलें मजमा'-निगारों पे हुई हैं आसाँ रास्ता ख़ुद कहीं मिलता है गुज़रने के लिए कौकब-ए-जाम-ओ-सुबू फ़र्श पर ढलके होंगे शाम हम अंजुमनी सुब्ह बिखरने के लिए शोरिश-ए-दहर को दहलीज़ से टकराने दे दर खुला छोड़ न 'मानी' कोई झरने के लिए