दरिया-ओ-मौज सा कभी हम से जुदा न हो ऐ बुत ख़ुदा तलक भी तिरा आश्ना न हो महफ़िल में इस परी की जो ये दिल-जला न हो यारब शराब-ए-नाब में ही कुछ मज़ा न हो उस सब्ज़ ख़त के बोसे लिए मैं ने ख़्वाब में यारब ग़ुबार दिल में कहीं आ गया न हो पिलवा रहे हो रू-ब-रू ग़ैरों को जाम-ए-मय और कहते हो मुझे तो मिरी जाँ ख़फ़ा न हो मेरी रविश पे किस लिए बहका है क्या हुआ मजनूँ से कह दो चुप भी हो यूँ बावला न हो निकहत से मुश्क-ओ-इत्र की दुनिया महक गई पानी नहाने में तिरा जूड़ा खुला न हो मर ही गया उधर जो मिरा नामा-बर गया क़ासिद ख़ुदा के वास्ते तू भी फ़ना न हो बख़्त-ए-सियह ज़लील हमें यूँ भी करते हैं जिस शब वो आए घर को उसी शब दिया न हो लाला हो अर्ग़वाँ हो सुख़न हो गुलाब हो चम्पा हो यासमन हो मगर दीलिया न हो आब-ए-रवाँ हो चाँदनी हो सब्ज़ा-ज़ार हो नर्गिस की तरह ग़ैर कोई देखता न हो साक़ी हो मय हो गाएँ परी-ज़ाद सब बहार साग़र से जल्द चलने में चर्ख़-ए-दुता न हो परियों का रक़्स रू-ब-रू होता रहे मुदाम पहलू से यार लब से पियाला जुदा न हो सामान-ए-ऐश गर ये मयस्सर हो ऐ 'नसीम' हट-धर्मी है ज़बाँ पे जो शुक्र-ए-ख़ुदा न हो